नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर दो निजी पक्षों के बीच मुकदमे को कथित तौर पर “हाईजैक” करने पर मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकार संबंधित पक्षों के बीच निजी विवाद में शामिल होने लगेगी तो इससे कानून का शासन खत्म हो जाएगा।
पीठ ने कहा, “क्या राज्य (सरकार) कार्यवाही में पक्षकार था? राज्य किस हैसियत से विवाद में शामिल हुआ है? अगर राज्य पक्षों के बीच निजी विवाद में शामिल होने लगेगा तो इससे कानून का शासन खत्म हो जाएगा। आप मुकदमे को हाईजैक नहीं कर सकते। दो पक्षों के बीच निजी मुकदमे में राज्य द्वारा अभियोग आवेदन दाखिल करना और उसे हाईजैक करना स्वीकार्य नहीं है।”
शीर्ष अदालत ने मथुरा में श्री बांके बिहारी मंदिर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की प्रस्तावित पुनर्विकास योजना को मंजूरी देने वाले अपने आदेश में संशोधन की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति शर्मा की शीर्ष अदालत की पीठ ने 15 मई, 2025 को अपने फैसले में मथुरा के श्री बांके बिहारी जी मंदिर के चारों ओर एक गलियारा विकसित करने और इस उद्देश्य के लिए मंदिर ट्रस्ट फंड से 500 करोड़ रुपये का उपयोग करने के उत्तर प्रदेश सरकार के कदम को मंजूरी दी थी।
याचिकाकर्ता देवेंद्र नाथ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि हमें पक्षकार बनाए बिना उत्तर प्रदेश सरकार को 300 करोड़ रुपये का फंड दिया है।
श्री सिब्बल ने कहा, “आप एक अन्य याचिका में आदेश देकर कैसे निर्देश दे सकते हैं कि एक निजी मंदिर की कमाई राज्य को सौंप दी जाए।”
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि राज्य ने प्रसिद्ध मंदिर के प्रबंधन और प्रस्तावित गलियारे के काम की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बनाया है। उन्होंने कहा कि अधिनियम के अनुसार पूरा पैसा ट्रस्ट के पास होगा, न कि सरकार के पास।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के वकील को ट्रस्ट के संबंध में पारित अध्यादेश की एक प्रति याचिकाकर्ता को देने का निर्देश दिया और संबंधित प्रमुख सचिव को 29 जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा।
उन्नीस मई को एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का कार्यान्वयन व्यावहारिक रूप से असंभव है। साथ ही, मंदिर के कामकाज से ऐतिहासिक और परिचालन रूप से जुड़े लोगों की भागीदारी के बिना मंदिर परिसर के पुनर्विकास के किसी भी प्रयास से प्रशासनिक अराजकता की संभावना है।
याचिका में दावा किया गया कि इस तरह के पुनर्विकास से ऐतिहासिक और भक्ति महत्व वाले मंदिर और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के आवश्यक धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप को बदलने का जोखिम है।
आवेदक ने दावा किया कि वह मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी का “वंशज” है और उसका परिवार पिछले 500 वर्षों से पवित्र मंदिर के मामलों का प्रबंधन कर रहा है। उन्होंने कहा कि वह मंदिर के दैनिक धार्मिक और प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल थे।
शीर्ष अदालत ने 15 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आठ नवंबर, 2023 के आदेश को संशोधित किया था, जिसमें राज्य की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार किया गया था, लेकिन राज्य को मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।